Confusion

उलझन 


ज़माने से इश्क़ का ईझहार करने की तम्मन्ना दिल में है 
ये बेचैन दिल उलझन में है 
     उलझन ये की उसे बताये तो कैसे बताये 
     उलझन ये की उसे समझाए तो कैसे समझाए
     दिले ईझहार को  छुपाये  तो कैसे छुपाये 
     हाए इझहारे दिल जताये तो कैसें जताये
उसे देख कर मेरे लब्ज चुप्पी साद लेते है 
और उसके लब्ज न जाने क्या केह जाते है 
मै सुन कर भी कुछ समझ नहीं पाती
मै ना समझे भी उसकी बातो में खो जाती 
     उसकी नादान नजरे जब मेरी नजरो से टकराती
     मेरी नजरे तब तारे गिन आती 
     इस डर से की कही उसने देख लिया 
     तो समझ जायेगा मेरी उलझन पहचान जएगा 
पर मै उससे कुछ  छुपाना नहीं  चाहती 
बस डरती हूँ, क्युकी उसे खोना नहीं चाहती 
उसके साथ मै, मै नहीं रहती 
उसके बिना मुझे जिंदगी नहीं भाती 
     मेरे इश्क़ से अनजान वो मुझे पागल बुलाता है 
     पर उसे क्या पता इस पागलपन का अलग ही नशा हैँ
     मै इस नशे में खो चुकी हूँ 
     इश्क़ में मै पागल हो चुकी हूँ 
न जाने इस डर का क्या होगा 
न जाने मेरी उलझन का क्या होगा 
क्या मेरी तम्मन्ना पूरी होगी 
या मैं ओर बस मेरी कविताएँ होगी। ........ 





Comments

  1. Ache likhe hai tmhne.
    Kya pata wo v aisa he soch raha ho,
    Yahe uljhan me phasa ho,
    Chupke se tmhare kavitaye he dekh raha ho,
    Aur paresan horaha ho!

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